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US Donald Trump Issues Ultimatum: संयुक्त राज्य अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार (30 नवंबर) को ‘ब्रिक्स’ देशों को डॉलर का विकल्प खोजने के उनके प्रयासों के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी. ट्रंप ने डॉलर का विकल्प ढूंढने की कोशिश कर रहे ब्रिक्स देशों से आयात पर 100 फीसदी टैक्स (टैरिफ) लगाने की धमकी दी है. ब्रिक्स में दुनिया की दो सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं चीन और भारत भी शामिल हैं.
ट्रंप का यह अल्टीमेटम तब आया है, जब BRICS देशों ने अक्टूबर में रूस के कज़ान में बैठक के दौरान डॉलर के विकल्प के रूप में अपनी साझा मुद्रा विकसित करने की संभावना पर चर्चा की थी.
ट्रम्प के चुनावी वादों में चीनी उत्पादों पर 60% तक आयात शुल्क लगाने का वादा भी शामिल था. ट्रंप की घोषणा के बाद ऐसी आशंकाएं जताई जा रही थी कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध तेज हो जाएगा.
ट्रंप का अल्टीमेटम
ट्रंप ने शनिवार (30 नवंबर) को अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में ब्रिक्स देशों को यह चेतावनी दी. पोस्ट में ट्रंप ने कहा, ”हम ब्रिक्स देशों से एक वादा चाहते हैं कि वे नई मुद्रा नहीं बनाएंगे. हम यह भी वादा चाहते हैं कि वे मजबूत अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में किसी अन्य मुद्रा का समर्थन नहीं करेंगे. अगर वे ऐसा करते हैं , उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ देना पड़ेगा.”
पिछले कुछ सालों में ट्रंप अमेरिकी कंपनी हार्ले डेविडसन को लेकर भी कई बार भारत की आलोचना कर चुके हैं. ट्रंप अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताते हैं लेकिन ट्रंप व्यापार संबंधी मुद्दों पर भी भारत को दुविधा में डाल रहे हैं. इस स्थिति में भारत बेहद सतर्क दिखाई दे रहा है. ट्रंप का यह कदम अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुत्विता को चुनौती देने की कोशिश करने वाले BRICS देशों के लिए खतरे की घंटी हो सकता है, खासकर भारत जैसे देशों के लिए जो अमेरिकी बाजार में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए पूरी तरह से डॉलर पर निर्भर हैं.
The idea that the BRICS Countries are trying to move away from the Dollar while we stand by and watch is OVER. We require a commitment from these Countries that they will neither create a new BRICS Currency, nor back any other Currency to replace the mighty U.S. Dollar or, they…
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) November 30, 2024
एस जयशंकर का BRICS मुद्रा पर किया था स्पष्ट विरोध
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने BRICS की साझा मुद्रा पर अपनी स्पष्ट राय जाहिर कर चुके हैं. उनका कहना था कि यह संभावना बहुत कम है कि BRICS देशों में कोई साझा मुद्रा विकसित हो, क्योंकि हर देश अपनी मुद्रा के जरिए वैश्विक व्यापार करता है और इसके लिए उनके बीच मौद्रिक नीतियों, वित्तीय नीतियों और राजनीतिक दृष्टिकोणों का मजबूत सामंजस्य होना जरूरी है. जयशंकर ने कहा, “कई देशों का यह कहना है कि उन्हें किसी तीसरी मुद्रा की जरूरत नहीं है, और यह पूरी तरह से समझने योग्य है. कभी-कभी यह तरलता (Liquidity), लागत और दक्षता का मुद्दा बन जाता है.”
उन्होंने BRICS मुद्रा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि देशों के बीच एक साझा मुद्रा की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए एक बड़ी राजनीतिक और आर्थिक सहमति की आवश्यकता होगी. यह बात याद रखने योग्य है कि BRICS देशों के बीच विविध वित्तीय, मौद्रिक और राजनीतिक दृष्टिकोणों के बावजूद, कोई साझा मुद्रा संभव नहीं है.
क्यों की जा रही नई मुद्रा की तलाश?
यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं. ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान समेत कई देशों ने रूस पर 16,500 से अधिक प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों के तहत, रूस के लगभग आधे विदेशी भंडार लगभग 276 बिलियन डॉलर को फ्रीज कर दिया गया है. इसके अलावा, यूरोपीय संघ ने रूसी बैंकों की लगभग 70 प्रतिशत संपत्ति जब्त कर ली है और उन्हें स्विफ्ट बैंकिंग प्रणाली से बाहर कर दिया है.
लेकिन ब्रिक्स देशों का कहना है कि वैश्विक संगठनों पर पश्चिमी देशों का दबदबा है. ब्रिक्स का मानना है कि उभरती आर्थिक शक्तियों का उचित प्रतिनिधित्व मिलनी चाहिए. ब्रिक्स देशों की संयुक्त अर्थव्यवस्था 28.5 ट्रिलियन डॉलर या विश्व अर्थव्यवस्था का 28% है. कच्चे तेल के उत्पादन में ब्रिक्स देशों की हिस्सेदारी 44% हैं, लेकिन इसके बावजूद वैश्विक कारोबार पर अमेरिकी डॉलर का दबदबा है.
डॉलर के इस दबदबे को देखते हुए एक नई मुद्र प्रणाली को विकसित करने की मांग उठी है. इसमें रूस के साथ-साथ ब्राजील के नेताओं ने भी शिखर सम्मेलन में मांग रखी थी. लेकिन इस मांग को पूरा करने में एक परेशानी ये है कि सभी सहयोगी देशों की अर्थव्यवस्थाएं अलग-अलग मिजाज की हैं.
अमेरिकी डॉलर क्यों है इतना अहम?
दुनिया भर में व्यापार, अंतर्राष्ट्रीय भुगतान, ऋण और आयात-निर्यात ज्यादातर अमेरिकी डॉलर में होते हैं. वैश्विक मुद्रा भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी 59 प्रतिशत है और दुनिया के कुल ऋण का 64 प्रतिशत डॉलर में दर्ज किया गया है. इसके अलावा, 58 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन भी डॉलर में किए जाते हैं. हालांकि यूरो के अस्तित्व में आने के बाद डॉलर के प्रभुत्व में कुछ कमी आई है, लेकिन फिर भी यह दुनिया की सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा बनी हुई है. विदेशी भुगतान में डॉलर का योगदान 88 प्रतिशत है.
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